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Lyrics
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
भगवान और खुदा आपस में बात कर रहे थे
मंदिर और मस्जिद के बीच चौराहे पर
मुलाक़ात कर रहे थे
के हाथ जोड़े हुए हो या दुआ में उठे
कोई फर्क नहीं पड़ता है
कोई मंत्र पढता है तोह कोई नमाज़ पढता है
इंसान को क्यों नहीं आती शर्म है
जब वह बंदूक दिखा कर पूछता है
की क्या तेरा धरम है
उस बन्दूक से निकली गोली न ईद देखती है न होली
सड़क पे बस सजती है बेगुनाह खून की रंगोली

भगवान और खुदा आपस में बात कर रहे थे
मंदिर और मस्जिद के बीच चौराहे पे
मुलाक़ात कर रहे थे सब को हम दोनों ने
इसी मिटटी से बनाया
कोई जन्मा अम्मी की कोख से
तोह कोई माँ की गोद में रोते आया
कौन है वह कमबख्त
जिसने नफरत का पाठ पढ़ाया किसी
अकबर को कहा माँ को मार
और अमर के हाथों अम्मी को मरवाया
ममता का गला घोंटने वाले बेवकूफों को
कोई समझाओ मज़हब की इस जंग में तुमने इंसानियत को दफनाया

भगवान और खुदा आपस में बात कर रहे थे
मंदिर और मस्जिद के बीच चौराहे पर मुलाक़ात कर रहे थे

WRITERS

LIJO GEORGE, MILAP MILAN ZAVERI

PUBLISHERS

Lyrics © Universal Music Publishing Group

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